लेखनी कहानी -01-Sep-2022 सौंदर्या का अवतरण का चौथा भाग भाग 5, भाग-6 भाग 7 रक्षा का भारत आना ८भाग २१भ

३५- सौंदर्या बनी खिलौना-

रक्षा के बाहर जाने के बाद रक्षा के पिताजी उसके पीछे पीछे दौड़े। वह श्रेया की बेटी को खिलाने के लिए परेशान थे,और रक्षा उसको लेकर इधर उधर भाग रही थी। वह नन्ही परी को गोद में लेकर बाहर हॉल में जाकर बैठ गयी। पीछा करते हुए रक्षा के पिताजी भी वहां पहुंच गए, और बैठ कर दोनों नन्ही परी को खिलाने लगे। पिताजी नन्ही परी को खिलाते खिलाते बहुत खुश लग रहे थे। रक्षा के बाद उनके घर में यह नन्ही परी ही आई थी, जो सबसे छोटी है।रक्षा को खिलाने के बाद काफी समय हो गया घर में कोई छोटा बच्चा नहीं था। इसीलिए इस नन्ही परी को खिलाने की होड़ सी लगी रहती है। जिसको मौका  लगता है, वही उसे उठाकर भाग जाता है। और खिलाने के लिए तैयार रहता है। नन्ही परी में पिताजी को रक्षा ही नजर आ रही थी। वह कह रहे थे कि यह मेरी छोटी रक्षा ही है। पिताजी बार-बार कह रहे थे, ये अभी कुछ समझ नहीं पा रही है। बस वह तो सब की गोद का आनन्द उठा रही है। परंतु जैसे-जैसे ये बड़ी होगी, वैसे वैसे हमारे प्यार को समझेगी। फिर इस के साथ खेलने में बहुत मजा आएगा। इतने में मैं वह नन्ही परी जोर जोर से रोने लगी। पिता जी ने कहा- यह क्यों रो रही है। तब मां ने कहा कि उस को भूख लग रही होगी। वह बहुत देर से तुम सब के साथ खेल रही है। जाओ उसको उसकी मां को देकर आओ। उसके बाद  रक्षा उठी और उसने नन्ही परी को गोद में उठाया। और अपनी भाभी श्रेया के पास लेकर गई। भाभी से कहा- कि शायद इस को भूख लग रही है, तो इसको आप भाभी दूध पिला दीजिए।  भूख से यह रो रही है। श्रेया अपनी बेटी को रोता हुआ देखकर परेशान हो गयी। उसने रक्षा की गोद से अपनी बच्ची को लिया, और तुरंत उसे दूध पिलाने लगी। श्रेया दूध पिला दे पिला दे अपनी बेटी के सर पर हाथ फेर रही थी अपनी बेटी को नेहा रही थी अपनी बेटी को स्तनपान कराते हुए और कितना शुभ काम कर रही थी उसके अंदर मातृत्व की धारा धारा पवाह बह रही थी। सिया को ऐसा फील हुआ अनुभव हो रहा था कि जैसे दुनिया जहान की खुशियों से मिल गई हो मां बनकर सेवा के अंदर बड़ी गंभीरता आ गई थी इतने कष्ट झेलने के बाद भी उसे कोई दुख नहीं हो रहा था बल्कि अंदर से इतनी खुश थी कि वह मां बन चुकी है और आप सभी लोगों से खुश हैं अपनी बेटी को दूध पिला ही रही थी कि अचानक उसका फोन बजने लगा। श्रेया ने देखा-फोन उसके ऑफिस की साथी उसी औरत का था,जिसने श्रेया को डॉक्टर के पास ले जाकर मां बनने में मदद की थी।

श्रेया ने तुरंत उसका फोन उठाया, और फोन उठाते ही सबसे पहले उसे शुक्रिया अदा किया। शुक्रिया अदा करने पर मातृत्व कि वह मिठास उसके मुख से प्रतीत हो रही थी। क्योंकि श्रेया की भाषा में काफी परिवर्तन आ चुका था। वह श्रेया लग ही नहीं रही थी, जो पहले ऑफिस में काम करती थी। चिड़चििड़ी सी रहती थी, आज  श्रेया के शब्दों में बड़ी मधुरता सी प्रतीत हो रही थी। श्रेया ने अपनी ऑफिस की साथी से घर आने का आग्रह किया। वह महिला मित्र श्रेया के लिए बहुत खुश थी। उसने श्रेया के घर आने  की सहमति देते हुए कहा-कि जैसे ही मुझे समय मिलेगा। मैं तुम्हारी बेटी से मिलने जरूर आऊंगी। ठीक है,और तुम अपना ध्यान रखना। अभी मैं फोन रखती हूं, मिलते हैं फिर। श्रेया ने कहा- ठीक है, बाय । श्रेया ने एक बार फिर अपनी दफ्तर की दोस्त को  बहुत-बहुत आभार प्रकट किया और कहा- कि आज मैं अगर मां बन सकी हूं, तो वह सिर्फ तुम्हारे ही मदद की वजह से हो सका है। यह सब क्या कह रही हो, ऐसा कुछ नहीं है यह सब भगवान की माया है। हम तो माध्यम हैं बस। चलो फिर मिलते हैं, कहकर फोन काट दिया।

श्रेया अपनी बेटी की तरफ देखते हुए यह सोच रही थी, कि आज इस ऑफिस की दोस्त ने श्रेया की मदद ना की होती तो क्या वह मां बन पाती। क्या मेरी गोदी में मेरी बेटी होती, मैं दुनिया के ताने सह रही होती। घर में सास ससुर की बातें भी सुन ही रही होती, आज जो सुख मुझे मिला है वह सिर्फ मेरी दोस्त की वजह से मिला है। उसका मैं जितना शुक्रिया अदा करूं, कम है। श्रेया ऐसा सोच ही रही थी कि श्रवन कमरे में आया। उसने देखा कि श्रेया कहीं खोई हुई है। श्रवन ने आवाज लगाई.... श्रेया..... श्रेया .....श्रेया...... श्रेया तो जैसे ध्यान मग्न थी। उसने श्रवण की एक आवाज का भी जवाब नहीं दिया। तब श्रवन ने उसे झकझोरा, तब जाकर कहीं श्रेया का ध्यान टूटा।श्रवन ने पूछा- कि क्या सोच रही थी श्रेया,  तब श्रेया ने बताया कि आज ऑफिस वाली फ्रेंड का फोन आया था।वह मेरा हाल चाल पूछ रही थी, और मेरे लिए बहुत खुश थी। तो मैंने भी उसका शुक्रिया अदा किया, और  उसको घर आने के लिए कहा- उसका फोन रखने के  बाद  में उसी के बारे में सोचने लगी।अगर उसने ऐसा ना किया होता, हमारी मदद ना की होती तो आज क्या होता।आज मैं मां बन पाती थी,??? हम उसी तरह दुनिया के ताने सह रहे होते। इधर उधर डॉक्टरों के चक्कर काट रहे होते। श्रवन ने कहा- खैर छोड़ो,जो होना था वह हो गया। आज हमारे जीवन में खुशियां आ गयी हैं, हमारी बेटी हमारी गोद में है। तो अब हम पुरानी बातों को याद करके अपने मन को दुखी नहीं करेंगे। श्रवन ने श्रेया को समझाया। श्रेया भी श्रवन की बात से सहमत थी। उसे भी ऐसा ही लग रहा था, कि अब पुरानी बातों को भूल जाना चाहिए। और हमें अपने आज में जीना चाहिए ।

हमारा आज का सपना है, हमें अपनी बेटी के साथ अपने परिवार के साथ खुश रहना चाहिए। और आगे का जीवन खुशमय बनाने के लिए सोचना चाहिए ।कि हम अपनी बेटी की परवरिश कैसे करेंगे अपनी बेटी को कैसे पालेंगे-पोषेंगे। कैसे पढ़ाएंगे लिखाएंगे। अब हमें इस बारे में सोचना है, अब हम किसी पुरानी बात को नहीं सोचेंगे। श्रवन और श्रेया इस बारे में बात कर ही रहे थे, कि इतने में नन्ही परी के रोने की आवाज आई। उसकी आवाज सुनकर श्रेया ने जल्दी से देखा, तो वह सूसू करके गीले में पड़ी हुई थी। इसलिए रो रही थी, श्रेया ने उसका नैपकिन बदला। उसके बाद नन्ही परी शांत हो गई, और श्रवण उसको गोदी में लेकर खिलाने लगा। श्रवन उसे गोदी में लेकर खिलाते हुए बाहर आया, बाहर आकर उसने अपनी बेटी को पिताजी की गोद में दे दिया। और कहा- लो जाओ, दादा जी के पास खेलो।  उनके पिताजी दादाजी शब्द सुनते ही जैसे बाग-बाग हो गए। और नन्ही परी को गोद में ले लिया। उसको गोद में उठाते ही पिता जी एक नयी अनूभूति से ओतप्रोत हो जाते थे। जैसे उनकी वृद्ध काया से बुढापा परिंदे की भांति फुर्ररर हो जाता हो। और वह फिर से बचपन की गलियों में घूमते से नजर आने लगते। यूं तो पिताजी

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7 Comments

Pallavi

22-Sep-2022 09:35 PM

Very nice

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Abeer

22-Sep-2022 11:01 AM

Nice post

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Barsha🖤👑

21-Sep-2022 05:27 PM

Nice post 👍

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